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चतुराई धरी रह गई ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"           चतुरसिंह के पिता का देहांत हो चुका था. उस ने अपने छोटे भाई कोमलसिंह को बंटवारा करने के लिए बुलाया , “ बंटवारे के पहले खाना खा लेते है. ” खाने परोसते हुए चतुरसिंह ने कोमलसिंह से कहा.         कोमलसिंह ने जवाब दिया , “ भैया ! बंटवारा आप ही कर लेते. मुझे अपना हिस्सा दे देते.बाकि आप रख लेते. मुझे बुलाने की क्या जरुरत थी ?”        “ नहीं भाई. मै यह सुनना बरदाश्त नहीं कर सकता हूँ कि बड़े भाई ने छोटे भाई का हिस्सा मार लिया ,” कहते हुए चतुरसिंह ने भोजन की दो थाली परोस कर सामने रख दी.         एक थाली में मिठाई ज्यादा थी. इस वजह से वह थाली खालीखाली नजर आ रही थी. दूसरी थाली में पापड़ , चावल , भुजिए ज्यादा थे. वह ज्यादा भरी हुई नज़र आ रही थी. मिठाई वाली थाली में दूधपाक , मलाईबरफी व अन्य कीमती मिठाइयाँ रखी थी.        “ जैसा भी खाना चाहो , वैसी थाली उठा लो ,” चतुरसिंह ने कहा , वह यह जानना चाहता था कि बंटवारे के समय कोमलसिंह किस बात को तवज्जो देता है.ज्यादा मॉल लेना पसंद करता है या कम.         चूँकि कोमलसिंह को मी
             घमंडी सियार   ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"               उस ने अपने से तेज़ दौड़ने वाला जानवर नहीं देखा था. चूँकि वह घने वन में रहता था. जहाँ सियार से बड़ा कोई जानवर नहीं रहता था. इस वजह से सेमलू समझता था कि वह सब से तेज़ धावक है.       एक बार की बात है. गब्बरू घोड़ा रास्ता भटक कर काननवन के इस घने जंगल में आ गया. वह तालाब किनारे बैठ कर आराम कर रहा था. सेमलू की निगाहें उस पर पड़ गई. उस ने इस तरह का जानवर पहली बार जंगल में देखा था. वह उस के पास पहुंचा.      " नमस्कार भाई !"      " नमस्कार  !" आराम करते हुए गब्बरू ने कहा , " आप यहीं रहते हो ?"     " हाँ जी , " सेमलू ने जवाब दिया , " मैं ने आप को पहचाना नहीं   ?"     " जी. मुझे गब्बरू कहते हैं ," उस ने जवाब दिया , " मै घोड़ा प्रजाति का जानवर हूँ ," गब्बरू ने सेमलू की जिज्ञासा को ताड़ लिया था. वह समझ गया था कि इस जंगल में घोड़े नहीं रहते हैं. इसलिए सेमलू उस के बारे में जानना चाहता है.     " यहाँ कैसे आए हो ?"      " म